कहाँ से जहाँ तक की यात्रा : डाक्टर सत्य प्रकाश पाण्डेय

           (भाग - 2)

 अभी कल ही की तो बात है. अखबार में खबर निकली. लोगों ने ध्यान से खबर को अपने मानस पटल पर अंकित किया. लिखा था "इंजीनियरिंग की और हुनर दिखाया शिल्प   का". आज के दौर में समाज, इंटरडिसिप्लिन हो गया है. कार्य के स्थल पर भी  एक व्यक्ति से उम्मीद की जाती है, कि वह कई विधाओं में अपना योगदान दे. ऐसी परिस्थितियों में यदि कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व में विविधता नहीं लाएगा, उसकी पहचान गौण होकर रह जाएगी. खबर में तनीमा शाह और शर्मिष्ठा पाल ने अपना स्थान सुनिश्चित किया. एक इंजीनियर अगर शिल्पकारी में अपने हुनर से स्थान बनाएं तो यह प्रासंगिक है ही.
 यह तो हुई, एक खास व्यक्ति की बात. अब मैं आपको मेरे जैसे अति सामान्य लोगों की बात बताता हूं. पिछले लेख में मैंने सरकारी नौकरी की खींचतान तथा प्राइवेट नौकरी के प्रति लोगों की बदली  हुई दृष्टि को रेखांकित किया था. रोजगार के प्रति दशकों के सामाजिक वार्तालाप प्रभाव युवाओं पर क्या पड़ता है इसका खाका खींचा था. मेरा मानना है कि "इतना आसान नहीं था खुद को पाना" लेख कुछ अखबार के पन्नों में सिमट कर रह जाने वाला भाव नहीं है, वरन  आवश्यकता है व्यक्ति व्यक्ति के मन पर, इस लेख के प्रभाव को पड़ने का. आखिर किसी भी योग्यता को धारण करने के पश्चात  यदि व्यक्ति अपने लिए बदले हुए परिदृश्य में स्वरोजगार स्थापित करने की दिशा में नहीं बढ़ेगा, तो आज के परिवेश में वह ना तो खुद ही जी पाएगा और ना ही एंटरप्रेन्योरशिप के इस जमाने में कोई सम्मान ग्रहण कर पाएगा. आज के समाज की आवश्यकता है "रोजगार उत्पन्न करने वाला व्यक्तित्व".  बहुत संभव है किसी बड़े पुरस्कार के लिए आने वाले समय में ऐसे लोगों को विशिष्ट सम्मान का दर्जा दिया जाए, जो अपने साथ लोगों के लिए रोजगार सृजन करें. जनसंख्या वृद्धि के इस भयावह परिदृश्य में यदि कोई व्यक्तित्व हजारों लोगों को रोजगार सृजन करता है, तो निश्चित ही वह दूर द्रष्टा है और उसे राष्ट्र सेवक के रूप में सम्मान देना चाहिए.
"कहां से जहां तक की यात्रा" के इस पन्ने में मैं आपको कुछ अन्य बातों पर लेकर चलता हूं. व्यक्तित्व विकास के "आत्मविश्वास कैसे प्राप्त करें" पहलू के क्रम में पिछले लेख में हमने दो बातों को उद्धृत किया था. पहला था, इनीशिएटिव और दूसरा था कंसिस्टेंसी. इसका मतलब है शुरुआत और अनवरत प्रयास. आज के परिदृश्य में  अपने को खोना आसान है, परन्तु पाना मुश्किल..कुछ ऐसी ही बातों से शुरू हुआ, लेख आप को स्पष्ट करने में सफल रहा कि इस भूलभुलैया जैसे सामाजिक जीवन में, अपने व्यक्तित्व को प्राप्त कर लेना सचमुच कठिन परंतु अति आवश्यक चीज है. बिना आपके व्यक्तित्व के आप ना तो किसी एंटरप्रेन्योरशिप में सफल हो सकते हैं और ना ही किसी नौकरी की मारामारी में जीत सकते हैं.
आज हम व्यक्तित्व विकास के तीसरे पहलू पर ध्यान देंगे. लेकिन उससे पहले हम आपको एक खास बात बताते हैं. अखबार में छपी खबर पर निगाह तो सबकी पड़ती है,और उसे एक विशिष्ट का दर्जा देकर,  सारे लोग अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. सोचते हैं वह कोई खास है, और वहां तक पहुंचना मेरे लिए  बहुत ही असंभव है. यही बात बहुत सारे लोगों के द्वारा अपनाई जाती है. जबकि खबर में स्थान पाने वाला व्यक्तित्व, बिल्कुल सामान्य, हम और आप की तरह ही  होता है. परंतु फर्क यह है कि वह जो सोचता है, उस पर काम करता है, उस पर काम करता है, उस पर काम करता है.  हम और आप उसकी खबर पढ़ते हैं, उसको अनोखा समझते हैं, उससे दूरी बनाते हैं.
 अब यही बात खास है. तीसरा चरण है "नॉ रियली व्हाट मैटर्स फॉर यू".  प्रत्येक व्यक्ति को भगवान ने वही 24 घंटे प्रदान किए हैं.  परंतु जो व्यक्ति सफल होता है या फिर जिसको हम सब सफल मानते हैं, उस  व्यक्ति ने अपने 24 घंटों का बंटवारा कुछ इस प्रकार से किया है कि उसके आनंद और कार्यों में कोई फर्क नहीं रह जाता. जब हमें अपने ऊपर काम करना हो तब हमें कछुए की तरह, अपनी गर्दन वही डालनी चाहिए जहां हमारी सिद्धि तय हो सके.  अगर हम आप से पूछें, क्या आप अपने समय का बंटवारा  कुछ इस प्रकार करते हैं. मेरा मानना है कि केवल 2 प्रतिशत लोग, अपने काम पर अपना समय खर्च करना जानते है. ऐसे लोगों को बहुतायत लोग "मतलबी" की श्रेणी में रखते हैं. कुछ लोग तो उन्हें स्वार्थी की उपमा देते हैं.  लेकिन सच्चाई यही है कि वे मतलबी या स्वार्थी कहे जाने वाले लोग,  अपने ऊपर भी काम करते हैं और अपने लोगों के लिए नए रास्ते भी बनाने में सफल होते हैं. जरूरत पड़ने पर वही लोग समाज के किसी बड़े काम में हाथ बढ़ा कर मदद भी करते हैं. क्योंकि वे जानते हैं कि उनको कब और कहां अपना समय और अपने संसाधनों का सदुपयोग करना है. यदि व्यक्ति यह समझना शुरू कर दे कि उसके लिए क्या आवश्यक है और वह अपने प्रत्येक दिन को इस तराजू पर तोल कर खर्च करें तो निश्चित ही वह "कहां से जहां तक की यात्रा" को पूरा कर पाएगा. अब हम बात करते हैं व्यक्तित्व विकास के आत्मविश्वास बढ़ाने वाले चौथे  पहलू पर.  इसका नाम है "फीडबैक". यह एक ऐसा शब्द है, जो आपको बहुत ही सावधानी से समझने की जरूरत है. "फीडबैक" कौन दे सकता है और इसका क्या महत्व है?  अधिकांश लोग अपने आसपास रहने वाले सगे संबंधियों और नाते रिश्तेदारों  से प्राप्त विचारों को "फीडबैक" मान बैठते हैं, और उसी अनुसार अपने कार्यों का मूल्यांकन समझकर उसमें परिमार्जन करने लगते हैं और इस तरह चलते हैं "उदय"पुर के लिए औऱ पहुंच जाते हैं "काला" हांडी. मैं स्थान विशेष का नाम नहीं ले रहा हूं. अपने जीवन में उदय करने के उद्देश्य से  निकला हुआ हर व्यक्ति यदि अपने आत्मविश्वास को प्राप्त करने की दिशा में कार्य कर रहा है, तो उसे अपने कार्यों के ऊपर सभी के द्वारा प्राप्त विचारों को अपने कार्यों के ऊपर "फीडबैक" नहीं मानना चाहिए.  बल्कि उसे ऐसे लोगों से राय लेने से बचना चाहिए, जो उसके काम को किसी भी प्रकार से जानते नहीं हो. जाने सुने व्यक्ति से राय मांगना, आपके काम के ऊपर राय नहीं हो सकती और इस अनोखी दुनिया में जब आप एक अलग व्यक्तित्व के निर्माण या फिर स्टार्टअप पर काम कर रहे हो जो कि बिल्कुल अनोखा और नया हो, तब उस खास चीज के लिए सबके पास जानकारी औऱ सही जानकारी हो ही, यह मानना ही गलत है. इसलिए हमको फीडबैक वही से लेना चाहिए, जो उस तरह के कार्यों को पहले से सफलतापूर्वक कर सके हो या फिर वह आपके साथ हर कदम पर कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा हो. हाँ, एक बात और हर खबर का पन्ना अति सामान्य लोगों से ही पटा पड़ा रहता है परंतु कुछ लकीरें आपको इसलिए विशिष्ट लगती हैं क्योंकि वे लोग अपने कार्यों पर सबसे "फीडबैक" लेते नहीं और जब किसी खास व्यक्ति से "फीडबैक" लेते हैं, तब सुधार करने से पीछे हटते भी नहीं.  मैंने कहा था "कहां से जहां तक की यात्रा होकर रहेगी". यदि आप मेरे 14 सूत्रों को गांठ बांधकर जीवन में उतारना शुरू कर दें, तो "कहां से जहां तक की यात्रा अवश्य पूरी होगी".
( लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक है और व्यक्तित्व विकास की कार्यशाला डॉ सत्या होप टॉक MEET के संस्थापक है)

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