शरद पूर्णिमा : समय, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

शरद पूर्णिमा :
समय, शुभ मुहूर्त और पूजा विधी :

शरद पूर्णिमा को आरोग्‍य का पर्व कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को अमृतमयी चांद अपनी किरणों में स्‍वास्‍थ्‍य का वरदान लेकर आता है। आचार्य गोविन्द प्रसाद पाण्डेय "ध्रुव जी" के अनुसार शरद पूर्णिमा हिंदू पंचांग में सबसे धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण पूर्णिमा की रातों में से एक है। शरद पूर्णिमा इस वर्ष 30 अक्टूबर को है। यह पर्व शरद ऋतु में आता है और यह आश्विन (सितंबर / अक्टूबर) के महीने में पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा की रात) को मनाया जाता है। इस उत्सव को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को सबसे विशेष महत्‍व खीर खाने का माना जाता है। चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखा जाता है और किरणों को उसके प्रभाव में पूरी तरह आने के बाद इस खीर को रोगियों को दिया जाता है। ऐसी मान्‍यता है कि खीर के सेवन से रोगों का इलाज हो जाता है। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं शरद पूर्णिमा कब है, किस समय से किस समय तक रहेगी, इसकी पूजा की विधि क्‍या है, मंत्र क्‍या है, शुभ मूहूर्त क्‍या है और पूर्णिमा पर खीर का क्‍या महत्‍व है।

पूर्णिमा तिथि :
30 अक्टूबर 2020 को शाम 05:25 से
31 अक्टूबर 2020 को रात्रि 07:31 तक
उदया तिथि के अनुसार पूर्णिमा तिथि 31 अक्टूबर शनिवार को रहेगी जिसके फलस्वरूप स्नान दान व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे, परंतु शरद पूर्णिमा में रात्रि का महत्व होने के कारण शुक्रवार को ही रात्रि में खीर रखकर यह पर्व मनाया जाएगा।

शरद पूर्णिमा क्या है:
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। वैसे तो साल में 12 पूर्णिमा तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत खास माना जाता है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। शरद पूर्णिमा से ही शरद ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी से रात्रि में भी चारों तरफ उजाला रहता है। सनातन धर्म की परंपरा में आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाने की धार्मिक और पौराणिक परंपरा रही है। शरद पूर्णिमा के पर्व को शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित मानी जाती है। ज्योतिष गणना के अनुसार संपूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा से निकली रोशनी समस्त रूपों वाली बताई गई है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है जबकि रात्रि को दिखाई देने वाला चंद्रमा अपेक्षाकृत अधिक बड़ा होता है। ऐसी मान्यता है कि भूलोक पर लक्ष्मी जी घर घर विचरण करती हैं, जो जागता रहता है उस पर उनकी विशेष कृपा होती है।

पूर्णिमा पर होगी लक्ष्‍मी के इन आठ स्‍वरूपों की पूजा :-

श्री लक्ष्मी जी के आठ स्वरूप माने गए हैं जिनमें धनलक्ष्मी, धान्‍यलक्ष्‍मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्या लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजय लक्ष्मी है लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना आदि रात्रि में किया जाता है। इस बार शुक्रवार को रात्रि में लक्ष्मी जी की विधि विधान पूर्वक पूजा का आयोजन किया जाएगा। कार्तिक स्नान के यम व्रत व नियम तथा दीपदान शनिवार से प्रारंभ हो जाएंगे। जबकि पूजा के विधान के तौर पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समस्त कार्यों से निवृत होकर अपने आराध्य देवी देवता की पूजा के बाद शरद पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

शरद पूर्णिमा को क्या करें :-

शाम के समय चंद्रमा निकलने पर अपने सामर्थ्य के अनुसार गाय के शुद्ध घी के दीये जलाएं। इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें। 
फिर ब्रह्म मुहूर्त जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।
अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें।

शरद पूर्णिमा खीर के लाभ:
शरद पूर्णिमा की रात्रि में आकाश के नीचे रखी जाने वाली खीर को खाने से शरीर में पित्त का प्रकोप और मलेरिया का खतरा भी कम हो जाता है। यदि आपकी आंखों की रोशनी कम हो गई है तो इस पवित्र खीर का सेवन करने से आंखों की रोशनी में सुधार हो जाता है। अस्थमा रोगियों को शरद पूर्णिमा में रखी खीर को सुबह 4 बजे के आसपास खाना चाहिए। शरद पूर्णिमा की खीर को खाने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। साथ ही श्वास संबंधी बीमारी भी दूर हो जाती है। पवित्र खीर के सेवन से स्किन संबंधी समस्याओं और चर्म रोग भी ठीक हो जाता है।
एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

खीर के सेवन से पहले रखें यह ध्‍यान:
शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

शरद पूर्णिमा पर बन रहे हैं खास योग:

इस बार शरद पूर्णिमा पर अमृतसिद्धि योग बन रहा है। शु्क्रवार के दिन मध्यरात्रि में अश्विनी नक्षत्र रहेगा। साथ ही इस दिन 27 योगों के अंतर्गत आने वाला वज्रयोग, वाणिज्य / विशिष्ट करण तथा मेष राशि का चंद्रमा रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा जाता है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर रासलीला के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने शिव पार्वती को निमंत्रण भेजा था। वहीं जब पार्वती जी ने शिवजी से आज्ञा मांगी तो उन्होंने स्वयं जाने की इच्छा प्रकट की। इसलिए इस रात्रि को मोह रात्रि कहा जाता है।

ऐसे करें शरद पूर्णिमा अनुष्ठान
शरद पूर्णिमा के शुभ दिन पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उसके बाद उस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। फिर, देवी लक्ष्मी को लाल फूल, नैवेद्य, इत्र और अन्य सुगंधित चीजें अर्पित करें। देवी मां को सुन्दर वस्त्र, आभूषण, और अन्य श्रंगार से अलंकृत करें। मां लक्ष्मी का आह्वान करें और उन्हें फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, सुपारी, दक्षिणा आदि अर्पित करें और उसकी पूजा करें। एक बार इन सभी चीजों को अर्पित करने के बाद, देवी लक्ष्मी के मंत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। देवी लक्ष्मी की पूजा धूप और दीप से करें। साथ ही देवी लक्ष्मी की आरती करना भी आवश्यक है। इसके बाद देवी लक्ष्मी को खीर चढ़ाएं। इसके अलावा इस दिन खीर किसी ब्राह्मण को दान करना ना भूलें। गाय के दूध से खीर तैयार करें। इसमें घी और चीनी मिलाएं। इसे भोग के रूप में धन की देवी को मध्यरात्रि में अर्पित करें। रात में, भोग लगे प्रसाद को चंद्रमा की रोशनी में रखें और दूसरे दिन इसका सेवन करें। सुनिश्चित करें कि इसे प्रसाद की तरह वितरित किया जाना चाहिए और पूरे परिवार के साथ साझा किया जाना चाहिए। शरद पूर्णिमा व्रत पर कथा अवश्य सुनें। कथा से पहले, एक कलश में पानी रखें, एक कलस में गेहूं भर लें, साथ ही पत्ते के दोने में रोली और चावल रखें और कलश की पूजा करें, तत्पश्चात दक्षिणा अर्पित करें। इसके अलावा इस शुभ दिन पर भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।

यह है शरद पूर्णिमा की पूजा विधि :
श्री लक्ष्‍मी को वस्त्र, पुष्प, धूप, दीप, गंध, अक्षत, तांबूल, सुपारी, ऋतु फल एवं विविध प्रकार के मिष्ठान अर्पित किए जाते हैं। दूध से बनी खीर जिसमें दूध, चावल, मिश्री, मेवा, शुद्ध देसी घी मिश्रित हो उसका नैवेद्य का भोग भी लगाया जाता है। रात्रि में अपनी शरद पूर्णिमा तिथि पर भगवती श्री लक्ष्मी की आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। लक्ष्मी जी के समक्ष शुद्ध देसी घी का दीपक प्रज्वलित करके उनकी महिमा में श्री सूक्त, श्री कनकधारास्राेत, श्री लक्ष्मी स्तुति, श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने एवं श्री लक्ष्मी जी के प्रिय मंत्र 'ॐ श्री नमः' जप करना अत्यंत फलदायी माना गया है।

हिन्दुस्तान जनता न्यूज़ की रिपोर्ट 

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