अधिक मास या मलमास का प्रारंभ, महत्व व कथा

अधिक मास कब प्रारम्भ होगा, महत्व व कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन-:
पितृ पक्ष समाप्ति के बाद इस वर्ष 18 सितम्बर 2020 से अधिक मास अर्थात् मलमास आरंभ हो गया है, हिंदू धर्म में अधिक मास का विशेष महत्व है। ऐसे में धार्मिक कार्य करने से विशेष पुण्य होता है, अधिक मास में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं, सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य बनाने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि हो जाती है जिसे अधिक मास, अधिमास, पुरुषोत्तम मास या मलमास कहते हैं।
चांद्रवर्ष 354 दिन, 22 घड़ी, 1 पल और 23 विपल का होता है जबकी सौर-वर्ष 365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल का होता है इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन, 53 घटी, 21 पल अर्थात लगभग 11 दिन का अन्तर आ जाता है। इस अन्तर में समानता बनाने के लिए चांद्रवर्ष 12 मासों के स्थान पर 13 मास का हो जाता है। जिस चंद्रमास में सूर्य-संक्रांति नहीं पड़ती, उसी को "अधिक मास" की कहा जाता है।

अधिक मास का महत्व :

आचार्य गोविन्द प्रसाद पाण्डेय "ध्रुव जी" के अनुसार अधिक मास में भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है, ग्रंथों में बताया गया है कि पुरुषोत्तम मास में स्नान, दान, पूजन और अनुष्ठान इत्यादि करने से विशेष फल प्राप्त होता है। अधिक मास में श्री मद्भागवत महापुराण का पाठ भी विशेष फलदाई होता है अथवा भगवान विष्णु की सत्यनारायण की कथा करने से भी फल प्राप्त होता है। आपको बता दें कि पितृपक्ष और मलमास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है, 25 नवम्बर को देवउठनी एकादशी पर श्री हरि निंद्रा से जागेंगे उसी के साथ मांगलिक कार्य शुरू होंगा। पुरुषोत्तम माह में सुबह उठकर भगवान श्री हरि विष्णु की अराधना करें, उन्हें केसर से तिलक करके विधीवत पूजा करें और तुलसी की भी पूजा करें। भगवान विष्णु को हो सके तो खीर, माखन और अच्छे पदार्थों का भोग लगाएं तथा अपनी क्षमता के अनुसार दान-पुण्य करें।

ध्यान रखनें योग्य कुछ आवश्यक बातें :
अधिक मास में कुछ कार्यों को करने से मना किया गया है जैसे कि नई वस्तु खरीदना, वस्त्र आभूषण, मकान, दुकान, वाहन आदि की खरीदारी नहीं की जाती है, विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य भी अधिक मास में नहीं किया जाता हैं।

अधिक मास की कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार लोगों नें अधिक मास को मलमास कहना प्रारम्भ कर दिया तो मलमास नाराज हो गए और अपनी पीड़ा को भगवान विष्णु के समक्ष रखा भगवान श्री हरि विष्णु ने बताया कि अधिकमास का कोई स्वामी नहीं होता है स्वामी न होने से अधिक मास को मलमास कहते है अत: आज से मैं तुम्हारा स्वामी हुं, वरदान देने के साथ साथ भगवान विष्णु ने अधिक मास को अपना नाम भी दिया, पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही नाम है इसीलिए इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाने लगा, भगवान विष्णु ने कहा जो भी व्यक्ति अधिक मास में मेरी पूजा, उपासना और आराधना करेगा उससे मैं प्रसन्न होकर अपना आर्शीवाद प्रदान करते हुए सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करुंगा।
दूसरी कथा के अनुसार जब ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर दैत्य राज‌ हिरण्यकश्यप अजेय होकर भगवान श्री हरि विष्णु से द्वेष करना प्रारम्भ कर दिया तब श्री हरि को नरसिंह के रूप में आकर के हिरण्यकश्यप का उद्धार करना पड़ा। चूंकी हिरण्यकश्यप को यह वरदान था कि मैं विधाता के बनाए हुए 12 महीनों में भी ना मारा जा सकुं इसलिए नरसिंह भगवान ने 13 वां महिना "अधिक मास" बनाया और संसार को उस दुष्ट राक्षस के चंगुल से मुक्ति दिलाई।

  - हिन्दुस्तान जनता न्यूज की रिपोर्ट 

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