कास ये कोरोना ना होता, मेरा मन यूँ उदास ना होता..
आइये पढ़ते हैं प्रधानाचार्य गौतम विश्वकर्मा द्वारा लिखित कविता-
कास ये कोरोना ना होता, मेरा मन यूँ उदास ना होता
कास ये कोरोना ना होता,
मेरा मन यूँ उदास ना होता।
चाहता जिधर मैं,
उधर घुम आता।।
कास ये कोरोना ना होता ..
मेरा मन यूँ उदास ना होता।।
गर्मी की छुट्टी कटती,
अपने ननिहाल में।
करते खुब मौज - मस्ती,
मामा-मामी के साथ में।।
नहीं होता स्कूल बंद,
टलती नहीं परीक्षा।
मेरा भी फस्ट डिविजन रिजल्ट आता,
मम्मी खिलाती चाट-पकौड़ी बरफ़ी और समोसा।
आते लोग बधाई देने,
शाबाश बेटा! शाबाश बेटा!
कास ये कोरोना ना होता,
मेरा मन यूँ उदास ना होता।।
लेखक- गौतम विश्वकर्मा
(प्रधानाचार्य)
शिवा एकेडमी, सुकृत-सोनभद्र
नोट :- यह कविता कोरोना महामारी में उदास बैठे छात्र / छात्राओं के मनोदशा पर आधारित है।
- अरुण कुमार गुप्ता की रिपोर्ट
कास ये कोरोना ना होता, मेरा मन यूँ उदास ना होता
कास ये कोरोना ना होता,
मेरा मन यूँ उदास ना होता।
चाहता जिधर मैं,
उधर घुम आता।।
कास ये कोरोना ना होता ..
मेरा मन यूँ उदास ना होता।।
गर्मी की छुट्टी कटती,
अपने ननिहाल में।
करते खुब मौज - मस्ती,
मामा-मामी के साथ में।।
नहीं होता स्कूल बंद,
टलती नहीं परीक्षा।
मेरा भी फस्ट डिविजन रिजल्ट आता,
मम्मी खिलाती चाट-पकौड़ी बरफ़ी और समोसा।
आते लोग बधाई देने,
शाबाश बेटा! शाबाश बेटा!
कास ये कोरोना ना होता,
मेरा मन यूँ उदास ना होता।।
लेखक- गौतम विश्वकर्मा
(प्रधानाचार्य)
शिवा एकेडमी, सुकृत-सोनभद्र
नोट :- यह कविता कोरोना महामारी में उदास बैठे छात्र / छात्राओं के मनोदशा पर आधारित है।
- अरुण कुमार गुप्ता की रिपोर्ट
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