आलेख - बदलते दौर में रक्षाबंधन
आलेख - बदलते दौर में रक्षाबंधन रक्षाबंधन यानी रक्षा का बंधन। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हर वर्ष इस पर्व को मनाया जाता है। रक्षाबंधन मनाने के कारणों के अनेक उदाहरण हम सभी के संज्ञान में है। परंतु जहां तक बदलते परिवेश में रक्षाबंधन की बात है तो समय के साथ इस पवित्र पर्व पर भी बदलाव की बयार का असर पड़ा ही है। आधुनिकता और बढ़ती शैक्षणिक योग्यता ने भी अपना व्यापक प्रभाव इस पर्व पर डाला है। सबसे पहले मूहूर्त लेकर भी तरह तरह की सूचनाएं भ्रमित करती हैं। इसके लिए संचार माध्यमों और सोशल मीडिया का बहुतायत सुलभ सुगमता भी बड़ा कारण है। पहले के समय में हमारे पुरोहित घर आकर जो दिन तिथि बता देते थे वहीं पक्का हो जाता था। लोग हंसी खुशी से दिनभर पर्व का आनंद लेते थे और यथा सुविधा समय से रक्षाबंधन बंधवाते रहे। पुराने समय में स्वनिर्मित राखियां, कच्चे धागे प्रचलन में थे जबकि आज सब कुछ रेडीमेड हो रहा है, विभिन्न प्रकार की महंगी राखियां भी बाजारों में उपलब्ध हो जाती हैं, अब तो चांदी की राखियां भी काफी प्रचलन में आ रही हैं/गई है