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इग्नू, क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद में 37वां दीक्षांत समारोह सम्पन्न

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इग्नू, क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद में 37वां दीक्षांत समारोह सम्पन्न अहमदाबाद :   इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय मैदानगढ़ी ने अपना 37वां दीक्षांत समारोह दिल्ली मुख्यालय और देश भर के 39 क्षेत्रीय केंद्रों पर आयोजित किया।  भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीश  धनखड़ जी दिल्ली में मुख्य अतिथि रहे । क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद के समारोह में गुजरात विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ नीरजा गुप्ता मुख्य अतिथि रहीं। आज जब पूरी दुनिया एक गांव में सीमित होकर रह गयी है (One Globe,One Village) इस परिप्रेक्ष्य में डिजिटल युग में दूरस्थ शिक्षा का महत्व पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने शिक्षा और कौशल विकास की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इग्नू राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा नाम उभरकर आया है। मुक्त विश्वविद्यालय उन लोगों के लिए एक बड़ा सपोर्ट है जो लोग अपने अन्य कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए प्रमाणपत्र तथा कौशल विकास करना चाहते हैं। मुख्य अतिथि ने श्री अवनाश शर्मा को एम्.एल.आई.एस., प्रोग्राम में प्रथम स्थान प्राप्त करने हेतु गोल्ड मेडल तथा प्रमाणपत्र प्रदान किया

शाकाहारी ही क्यों बनना?

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शाकाहारी ही क्यों बनना?                          (कविता) शाकाहारी क्यों बनना, आओ तुम्हें बताएं। शाकाहार अति उत्तम, खाएं और खिलाएं।। दूध दही फल हरी सब्जियाँ, भोजन में अपनायें, शाकाहारी मांस हेतु जीवों का क्रय, विक्रय पाप कहाता। मांस पकाकर देने वाला, भी दोषी कहलाता।। मृत जीवों की रूहें कैसे? हमको स्वस्थ्य बनाये, शाकाहारी जीव जंतु के मांस हेतु , जब बध करते हैं। तड़प तड़प कर कैसे? वे प्राण अंत करते हैं।। जीवों की हत्या कर, भक्षण कैसे जन को भाए, शाकाहारी मन में उथल पुथल की वृत्ती, मांसाहारी पाता। ग़ुस्सा और चिड़चिड़ापन क्रमश, वह उपजाता।। संबेदना दिनों दिन घटती धैर्य नहीं टिक पाये, शाकाहारी पृथ्वी पर बलशाली तो, हाथी ही होता है। सृजनशील हो करके वे लट्ठे को ढोता है।। रचनात्मक सृजनात्मक वृत्ति, शाकाहार जगाये, शाकाहारी मानव मांसभक्षी तब था, जब भू पर अन्न नहीं था। भू पर खेती नहीं थी, मित्रों केवल वन ही वन था।। वैज्ञानिक खोजों ने अब तो, विविध अन्न उपजाये, शाकाहारी मारे हुए जीवों की काया, शव ही तो कहलाये। मृत जीवों को खाने वाला, शवहारी कहलाये।। उनतीश प्रतिशत ज्यादा रोग, मांसाहार बढ़ाये,

जीत तुम्हारी पक्की होगी

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जीत तुम्हारी पक्की होगी                   (कविता) जीत तुम्हारी पक्की होगी, असफलता से?  ना घबराओ। बार-बार यदि मिले तुम्हें तो, अपने लक्ष्य पुनः दुहराओ।। हो प्रतिज्ञ कि तुम्हें सफलता, मिलनी बिल्कुल तय है। पूर्ण लगन से करो परिश्रम, त्यागो यदि कोई भय है।। प्रतिस्पर्धा करना बस छोड़ो, अपने मन में रखकर आस। पूरी होगी तेरी तमन्ना, छोड़ो विभ्रम,रखकर विश्वास।। खूब लगन और ऊर्जा के संग, अपना ख़ूब प्रयत्न करो। जग में जीत तुम्हारी होगी, अपने अंतरमन में धैर्य धरो।। असफलता ही है सिखलाती, सफलता का सफल मंत्र। अन्तःकरण पवित्र बनाओ, करो न कोई बस षड़यंत्र ।। चींटी को देखा है तुमने, लेकर चलती,सहती अति भार। श्रम करने से मत घबराना,चाहे कितना,विविध हो भार।। लेकिन लक्ष्य वो पाती है, गतिमान अनवरत, बिना थके। कठिन परिश्रम, लक्ष्य अडिग हो, तभी पूर्ण हो, स्वप्न सखे।।I  रचनाकार :  डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा               सुन्दरपुर, वाराणसी