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अक्षय तृतीया

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अक्षय तृतीया शुभफल प्रदायिनी अक्षय तृतीया शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि वैशाख मास में मनाई जाती है। स्वयं सिद्धि इस तिथि से मांँगलिक कार्यों का शुभारंभ विवाह, गृह प्रवेश, नव कार्य सनातन धर्म में इसका बड़ा महत्व है इस दिन दान पुण्य का अत्यंत महत्व है, शुभ कार्यों का  अमिट फल मिलता है। आज ही दिन परशुरामजी का महर्षि जमदग्नि रेणुका देवी के घर में जन्म हुआ था, जिन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा जाता है, इस दिन भगवान विष्णु ही नहीं भगवान परशुरामजी की भी पूजा आराधना का विधान है। महाभारत को पाँचवां वेद माना जाता है। वेद व्यास जी ने आज ही महाभारत लेखन शुरु किया था, श्रीमद्भागवत गीता का  जिसमें समावेश है, आज गीता के अठारवें अध्याय का पाठ करना शुभदायक होता है। आज के दिन मांँ गंगा धरा पर अवतरित हुई थीं, वर्षों बरस की भगीरथ तपस्या आज ही तो सफल हुई थी। तभी से परंपरा बन गई गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप दोष मिट जाते हैं। आज ही अन्नपूर्णा माता का जन्मदिन भी मनाते हैं, गरीबों को भोजन और भंडारे भी कराए जाते हैं। अक्षय तृतीया की महिमा अपार है अक्षय फल का मिलता लाभ है।  लेखक- सुधीर श्रीवास्तव गोण

शत शत नमन आपको हे भारतीय संविधान के निर्माता

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शत शत नमन आपको हे भारतीय संविधान के निर्माता भारत की माटी भी गर्वित हुई तुम जैसा रत्न पाकर, "भारत रत्न" से सुशोभित हुईं नाम आपका स्वर्णाक्षरों में सजकर, "सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सनतु निरामया" के सिद्धांत पर नए भारत का निर्माण किया.. अनेकता में एकता, आरक्षण का सही रास्ता दिखाया.. शोषित, दलित गरीब जनता का दर्द करीब से जाना, एकजुटता का संदेश दे, हाथ उनका थामा.. श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया, 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश इंदौर में हुआ जन्म, जन कल्याण कार्य हेतु सबने गॉड फादर कह बुलाया.. "गौतम बुद्ध", "कबीर" और "ज्योतिबा फुले" को अपना गुरु माना.. अछूत जाति का कहकर सामाजिक शोषण का हुए शिकार, बदले में हमें दे गए समानता और संविधान का अधिकार... लाख बाधाओं के होते हुए भी, उच्च शिक्षा हासिल की, संघर्षमय जीवन में भी, धैर्य और संयम की हमें प्रेरणा दी .. "भारत का राष्ट्रीय अंश", "भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण" कितने सारे पुस्तक इनकी लेखनी से सुशोभित हुए, छुआछूत के लिए संघर्ष, समाज सुध

पीढ़ी यह मुरझायी

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पीढ़ी यह मुरझायी         यश वैभव के खातिर हमने,                          कीमत बड़ी चुकायी।         संस्कार सब गुम हो गए,                           पापाचार कमायी।।   परिवार से प्रेम विमुख हो, पीढ़ी यह मुरझायी।।          रिश्ते नाते हुए खोखले,                            नही आज सच्चायी।          सुख के चैन हुए रफूचक्कर,                            शेष बची कठिनायी।।   दया धरम के भाव खत्म, दिखती है बेहयायी।   परिवार से प्रेम विमुख हो, पीढ़ी यह मुरझायी।।            बाहर से नैतिकता दिखती,                             अंदर जमी है काई।            निंदा करते जीवन बिता,                              अवसर की कवितायी।   जीवन का आनंद खो गया, शेष बची तन्हायी।   परिवार से प्रेम विमुख हो, पीढ़ी यह मुरझायी।।             ज्यादा पढ़े लिखे लोगो ने,                               नई युक्ति अपनायी।              कैसे पल में हो अमीर,                                रट बस यही लगायी।    प्रगति के इस अंध दौर में, अंध हुई है कमाई।    परिवार से प्रेम विमुख हो, पीढ़ी यह मुरझायी।।               बेचा है इमाम धर